बह रहा था एक दरिया ख्वाब में
फिर भी प्यासा रह गया मैं ख्वाब में
जी रहा हूँ और दुनिया में मगर
देखता हूँ और दुनिया ख्वाब में
रोज़ आता है मेरा ग़म बाँटने
आसमां से इक सितारा ख्वाब में
इस ज़मीं पर तो नज़र आता नहीं
बस गया है जो सरापा ख्वाब में
मुद्दतों से मैं उस का मुंतज़िर
कोई वादा कर गया था ख्वाब में
क्या यकीं आ जायेगा उस शख्स को
उस के बारे में जो देखा ख्वाब में
एक बस्ती है जहाँ खुश हैं सभी
देख लेता हूँ मैं क्या क्या ख्वाब में
अस्ल दुनिया में तमाशे कम हैं क्या
क्यूँ नज़र आये तमाशा ख्वाब में
खोल कर आँखें परेशां हूँ बहुत
खो गया जो कुछ मिला था ख्वाब में
क्या हुआ है मुझको 'आलम' इन दिनों
मैं ग़ज़ल कहता नहीं था ख्वाब में